(सामान्य विज्ञान) ऊष्मा - तापीय, रैखिक, क्षेत्रीय, आयतन प्रसार

सामान्य विज्ञान (General Science)
ऊष्मा (Heat)

तापीय प्रसार (Thermal Expansion)


सामान्यतः हम जानते है पदार्थो का ताप बढ़ाने पर अथवा उन्हें ऊष्मा देने पर पदार्थो में प्रसार (Expansion) होता है अर्थात पदार्थो की विसाओं में अन्तर आ जाता है।अतः किसी वस्तु के ताप में वृद्धि होने को तापीय प्रसार (Thermal Expansion) कहा जाता है।

  • यदि पदार्थ की तीन अवस्थाओं ठोस, द्रव तथा गैस को समान उष्मा दी जाये तो सर्वधिक प्रसार गैसों में होगा उससे कम प्रसार द्रव में तथा सबसे कम प्रसार ठोस में होगा।
  • सामान्यतः ताप वृद्धि करने पर पदार्थो में प्रसार होता है परन्तु कुछ पदार्थ अपवाद (Exception) भी होते है।

उदाहरण: 0 C - 4 C के बीच जल, 8 C - 140 C के बीच सिल्वर आयोडाइन (Agl) ये पदार्थ ताप वृद्धि करने पर संकुलित (contract) होते है।

रैखिक प्रसार (Linear Expansion)


किसी वस्तु के ताप में वृद्धि करने पर उसकी लम्बाई में होने वाली वृद्धि को रैखिक प्रसार कहा जाता है।

रेखीय प्रसार गुणांक (Coefficient of Linear Expansion): एक डिग्री सेल्सियंस (1 C) तापमान बढ़ाने पर किसी वस्तु की एकांक लम्बाई में होने वाली वृद्धि या प्रसार को रेखीय प्रसार गुणांक (α) कहा जाता है।
माना किसी वस्तु की प्रारम्भिक लम्बाई 1 है यदि ΔT ताप परिवर्तन करने से इसकी लम्बाई में Δ1 वृद्धि हो जाती है तो

रेखाय प्रसार गुणांक = लम्बाई में वृद्धि / मूल लम्बाई × ताप वृद्धि

http://www.iasplanner.com/civilservices/images/symbol3.jpg = ΔL / L ΔT

क्षेत्रीय प्रसार (Superficial Expansion)


किसी वस्तु के ताप में वृद्धि करने पर उसके क्षेत्रफल में होने वाली वृद्धि को क्षेत्रीय प्रसार कहा जाता है।

क्षेत्रीय प्रसार गुणांक : एक डिग्री सेल्सियस (1 ०C) तापमान बढ़ाने पर किसी वस्तु के एकांक क्षेत्रफल में होने वाली वृद्धि या प्रसार गुणांक (β) कहा जाता है।
माना किसी वस्तु का प्रारम्भिक क्षेत्रफल A है, यदि ΔT ताप परिवर्तन करने से इसके क्षेत्रफल  ΔA वृद्धि हो जाती है तो

क्षेत्रीय प्रसार गुणांक = क्षेत्रफल में वृद्धि / मूल क्षेत्रफल × ताप वृद्धि 

β = ΔA / A×ΔT

आयतन प्रसार (Cubical Expansion)


किसी वस्तु के ताप में वृद्धि करने पर उसके आयतन में होने वाली वृद्धि को आयतन प्रसार कहा जाता है।

आयतन प्रासार गुणांक (Coefficient of Cubical Expansion): एक डिग्री सेल्सियस (1 C) तापमान बढ़ाने पर किसी वस्तु के एकांक आयतन में होने वाली वृद्धि या प्रसार को आयतन प्रसार गुणांक Y कहा जाता हैं।

माना किसी वस्तु का प्रारम्भिक आयतन V है, यदि ΔT ताप परिवर्तन करने से इसके आयतन में ΔV वृद्धि हो जाती है तो

आयतन प्रसार गुणांक = आयतन में वृद्धि / मूल आयतन × ताप वृद्धि

http://www.iasplanner.com/civilservices/images/symbol2.jpg = ΔV / V×ΔT

रेखीय, क्षेत्रीय व आयतन प्रसार गुणांक में सम्ब्न्ध:

रेखीय प्रसार गुणांक (http://www.iasplanner.com/civilservices/images/symbol3.jpg) = क्षेत्रीय प्रसार गुणांक (β) / 2

रेखीय प्रसार गुणांक (http://www.iasplanner.com/civilservices/images/symbol3.jpg) = आयतन प्रसार गुणांक (http://www.iasplanner.com/civilservices/images/symbol2.jpg) / 3

अर्थात β = 2 http://www.iasplanner.com/civilservices/images/symbol3.jpg तथा http://www.iasplanner.com/civilservices/images/symbol2.jpg = 3 http://www.iasplanner.com/civilservices/images/symbol3.jpg

http://www.iasplanner.com/civilservices/images/symbol3.jpg : β : http://www.iasplanner.com/civilservices/images/symbol2.jpg = 1 : 2 : 3

जल का असामान्य प्रसार (Anomalous Expansion of Water)


सामान्यतः पदार्थो को जब गर्म किया जाता है तो इनमे प्रसार होता है किन्तु जब जल को 0 C से 4 C तक गर्म किया जाता है तो जल सिकुड़ता है अथार्त जल के आयतन (volume) में कमी आ जाती है तथा घनत्व बढ़ता है।

घनत्व (d) = द्रव्यमान (M) / आयतन (V)   [d http://www.iasplanner.com/civilservices/images/symbol1.jpg1 / V]

यही कारण है कि जल का घनत्व 4 C पर अधिकतम (Maximum) होता है।

जल के असामान्य प्रसार का जलीय जीवों के लिए महत्व (Importance of Abnormal Expansion of water for Aquatic Life): जल के असामान्य प्रसार का एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय प्रभाव होता है। जिन क्षेत्रों में तापमान बहुत कम होता है ऐसे ठण्डे देशो में तालाबों, झीलों आदि का जल जमने के बाद भी इसमें जलीय जीव-जन्तु (Aquatic Organism) जीवित बने रहते है। इसका कारण यह है कि जैसे-जैसे जलाशय 4 ०C तक ठण्डी होती जाती है, पृष्ठ (surface) का जल अपनी ऊर्जा वातावरण को देकर संघनित (condense ) होकर नीचे चला जाता है जबकि जलाशय का ऊपरी भाग जम जाता है।

यही कारण है कि पृष्ठ (surface) से ठीक नीचे का जल 4 C पर जल अवस्था में रहता है जिसमे जलीय जीव मछलियाँ आदि जीवित बनी रहती है जबकि झील या तालाब को ऊपर से देखने पर बर्फ जमी रहती है। यदि जल में यह गुण न पाया जाता तो इसका अधिकांश जलीय जीवन (जलीय जीव-जन्तु व पौधे) नष्ट हो गये होते।

  • जब जल 0 ०C पर जमने लगता है तो इसके आयतन में प्रसार होता है अर्थात बर्फ बनने की क्रिया में आयतन बढ़ जाता है।
  • अत्यधिक ठण्डे मौसम में जल की पाइपलाइन में बह रहे जल में जब ये घटना होती है तो असामान्य प्रसार के कारण शीत ऋतु की रातों में अधिकांशत: पाइप फट जाते है।
  • हम जानते है कि धातुएँ ऊष्मा की अच्छी चालक होता है, अतः धातुओं से बने बर्तनो में रखे हुए पदार्थ का वातावरण से ताप परिवर्तन के कारण आदान-प्रदान होता रहता है, यही कारण है कि धातु से बने कप से चाय पीने पर ओंठ जलने लगते है, जबकि चीनी मिट्टी (ऊष्मा की कुचालक) से बने प्यालो में चाय पीना अधिक सुगम होता है।
  • धातुएँ (तांबा, लौहा आदि) ऊष्मा की सुचालन होती है अर्थात सर्दियों में लोहे तथा लकड़ी से बनी कुर्सियों को जब हम हाथ से स्पर्श करते है तो लोहा सुचालन होने के कारण हमारे शरीर से ऊष्मा का संचरण आसानी से कर लेता है जबकि लकड़ी ऊष्मा की कुचालक होने के कारण ऊष्मा का संचरण नहीं कर पाती। अतः लोहे की कुर्सी छूने पर लकड़ी की कुर्सी की अपेक्षा अधिक ठंडी प्रतीत होती है।
  • शीत ऋतु में एक मोटा कंबल ओढ़ने की अपेक्षा दो या तीन पतली परतों वाले कंबल ओढ़ने पर अधिक सुरक्षा होती है। वायु ऊष्मा की कुचालक होती है जोकि दो तीन कंबलों की परतों के बीच ऊष्मा रोधी का कार्य करती है जिससे ऊष्मा संचरण नहीं हो पाता अतः सर्दी से अधिक सुरक्षा होती है।
  • खाना बनाने वाले बर्तनो की पेदी पर ताँबे की पाँलिश कर दी जाती है। हम जानते है कि ताँबा ऊष्मा का सुचालन होता है, जो कि पुरे बर्तन पर समान रूप से ऊष्मा को वितरित कर देता है और भोजन अच्छी तरह पक जाता है।
  • जिन घरों में छत कंकरीट की बनी होती है वे गर्मियों में अधिक गर्म हो जाती है क्योकि कंकरीट ऊष्मा की अच्छी चालक होती है।

न्यूटन का शीतलन नियम (Newton’s Law of Cooling)


हम जानते है कि दो वस्तुओं में तापांतर होने से उनके बीच ऊष्मा (Heat) स्थानांतरित होने लगती है और स्थानांतरण अधिक तापवाली (गर्म) वस्तु से कम तापवाली (ठंडी) वस्तु की ओर होती है।

न्यूटन के शीतलन नियम के अनुसार, "यदि किसी वस्तु तथा परिवेश (Surroundings) के ताप में अंतर है तो वस्तु में विकिरण (Radiation) द्वारा ऊष्मा क्षय होने की दर उस वस्तु तथा वातावरण के ताप के अंतर की समानुपाती होती है" अर्थात ऊष्मा क्षय की दर http://www.iasplanner.com/civilservices/images/symbol1.jpg तापांतर

अवस्था परिवर्तन (Change in Stage): हम जानते है कि द्रव (Matter) की तीन अवस्थाएँ होती है- निश्चित ताप पर पदार्थ की एक अवस्था का दूसरी अवस्था में बदलना (Transition) अवस्था परिवर्तन कहलाता है।

पदार्थ में अवस्था परिवर्तन, पदार्थ तथा उसको परिवेश के बीच ऊष्मा के विनिमय के कारण होता है।

अवस्था परिवर्तन के समय पदार्थ के अणुओं की माध्य गतिज ऊर्जा नहीं बदलती है जबकि अणुओ की आंतरिक स्थितिज ऊर्जा बदल जाती है।

गलन (Melting)

  • एक निश्चित ताप पर किसी ठोस (Solid) का द्रव (Liquid) में बदलना गलन कहलाता है।
  • गलन की अवस्था में ठोस तथा द्रव परस्पर तापीय साम्य (Thermal Equilibrium) में होता है 

गलनांक (Melting Point)


  • वह निश्चित ताप जिस पर ठोस तथा द्रव अवस्थाएँ परस्पर तापीय साम्य में होती है, गलनांक कहलाता है, अर्थात वह निश्चित ताप जिस पर कोई ठोस द्रव में बदलता है, उस पदार्थ का गलनांक कहलाता है।
  • गलनांक पर दाब का प्रभाव (Effect of Pressure on Melting Point)
  • सामान्य पदार्थो को ऊष्मा देने पर वे पिघलने पर प्रसारित होते है, उनका गलनांक दाब बढ़ाने पर बढ़ता है।
  • वे पदार्थ जो पिघलने पर संकुचित (contract) होते है उनका गलनांक दाब बढ़ाने पर घटता है।

गलनांक पर अशुद्धि का प्रभाव (Effect of Impurity on Melting Point )

अशुद्धि मिलाने से पदार्थ का गलनांक कम हो जाता है। जैसे 0 C पर पिघलती हुई बर्फ में यदि नमक, चीनी या अन्य अशुद्धियाँ मिला दी जाएँ तो बर्फ का गलनांक -22 C तक कम हो जाता है तथा ऐसा मिश्रण 'हिम मिश्रण' (Freezing mixture ) कहलाता है।

उपरोक्त तकनीक का उपयोग कुल्फी, आइसक्रीम आदि को शीघ्रता से पिघलने से बचाने के लिए किया जाता है।

हिमांक (Freezing point): एक निश्चित ताप पर किसी द्रव का ठोस में बदलना 'हिमीकरण' (Freezing) कहलाता है तथा वह निश्चित ताप जिस पर हिमीकरण की क्रिया होती है हिमांक (Freezing point) कहलाता है।

वाष्पन (Vapourisation): एक निश्चित ताप पर किसी द्रव (Liquid) का गैसीय (Gasseous) अवस्था में बदलना वाष्पन परस्पर तापीय साम्य (Thermal Equilibrium) में होते है।

क्वथनांक (Boiling point): वह निश्चित ताप जिस पर द्रव तथा गैस तापीय साम्य में होते है, क्वथनांक कहलाता है। अर्थात वह निश्चित ताप जिस पर कोई द्रव गैस में बदलता है उस पदार्थ का क्वथनांक कहलाता है।

क्वथनांक पर दाब का प्रभाव (Effect of Pressure on Boiling)

  • दाब बढ़ाने पर द्रव का क्वथनांक बढ़ जाता है।

उदाहरण - सामान्य परिस्थितियों की अपेक्षा पहाड़ी क्षेत्रों में खाना पकाना अधिक कठिन (अधिक ऊष्मा खर्च) होता है क्योकि वहाँ समुंद्र तट की तुलना में जल का क्वथनांक घट जाता है। यदि पहाड़ी पर खाना बनाने के लिए प्रेशर कुकर का इस्तेमाल किया जाए तो कुकर के अंदर दाब बढ़ते से क्वथनांक बढ़ जाता है जिससे भोजन अपेक्षाकृत शीघ्रता से पक जाता है।

क्वथनांक पर अशुद्धि का प्रभाव (Effect of  Impurity on Boiling Point)

  • अशुद्धि मिलाने पर द्रव का क्वथनांक बढ़ जाता है।

संघनन (Condensation): निश्चित ताप पर वाष्प (vapour ) का द्रव (Liquid ) में बदलना संघनन कहलाता है तथा वह निश्चित ताप जिस पर संघनन क्रिया होती है संघनन बिंदु (condensation point) कहलाता है।

सामान्य परिस्थितियो में क्वथानांक  (Boiling point ) तथा संघनन बिंदु (condensation point) का मान समान होता है।

गुप्त ऊष्मा (Latent Heat ): जब कोई पदार्थ अवस्था परिवर्तन की स्थिति में होता है तो पदार्थ तथा परिवेश (Surrounding) के बीच एक निश्चित मात्रा में ऊष्मा स्थानांतरित होती है, यह ऊष्मा ही पदार्थ की गुप्त ऊष्मा कहलाती है। अर्थात एक निश्चित ताप पर पदार्थ की अवस्था परिवर्तन हेतु आवश्यक ऊष्मा पदार्थ की गुप्त ऊष्मा कहलाती है।

यदि m द्रवमान का पदार्थ एक अवस्था से दूसरी अवस्था में परिवर्तन हो रहा है तो आवश्यक ऊष्मा की मात्रा है।

यहाँ Q = m पदार्थ की गुप्त ऊष्मा है जो प्रत्येक पदार्थ का विशिष्ट गुण होती है।

मात्रक (Unit): गुप्त ऊष्मा का SI मात्रक जूल/किग्रा. या कैलोरी / ग्राम है।

गलन कि गुप्त ऊष्मा (Latent heat of melting): एक निश्चित ताप पर ठोस के एकांक द्रवमान को द्रव (Liquid) में बदलने के लिए आवश्यक ऊष्मा को उस पदार्थ के गलन की गुप्त ऊष्मा कहते है। ठोस, द्रव अवस्था परिवर्तन के लिए आवश्यक ऊष्मा ही गलन की गुप्त ऊष्मा होती है।

  • 0 C पर एक ग्राम बर्फ को 0 C पर पानी में बदलने के लिए 80 किलो कैलोरी ऊष्मा की आवश्यकता होती है अर्थात बर्फ के गलन की गुप्त ऊष्मा का मान 80 कैलोरी / ग्राम होता है।

वाष्पन की गुप्त ऊष्मा (Latent heat of Vapourisation): एक निश्चित ताप पर द्रव के एकांक द्रवमान को वाष्प में बदलने के लिए आवश्यक ऊष्मा को द्रव की वाष्पन की गुप्त ऊष्मा कहते है। द्रव- गैस अवस्था परिवर्तन के लिए आवश्यक गुप्त ऊष्मा को वाष्पन की गुप्त ऊष्मा कहते है।

  • जल के लिए वाष्पन की गुप्त ऊष्मा का मान 540 कैलोरी प्रति ग्राम होता है।
  • उबलते जल की अपेक्षा उसी - ताप  की भाप (steam) से जलने पर अधिक कष्ट होता है।
  • चूँकि 100 C ताप के जल की अपेक्षा 100 C ताप की गुप्त ऊष्मा का मान अधिक होता है अतः जल की अपेक्षा समान ताप की भाप से जलने पर अधिक कष्ट होता है।
  • वाष्पीकरण (Evaporation): किसी द्रव की खुली सतह (Open surface) से प्रत्येक ताप पर द्रव की वाष्प बनती रहती है। यह क्रिया वाष्पीकरण कहलाती है।
  • वाष्पीकरण की क्रिया में ऊष्मा की आवश्यकता होती है। यह ऊष्मा द्रव द्वारा स्वंय अपने अंदर से ही प्राप्त की जाती है फलस्वरूप द्रव ठंडा हो जाता है।

प्रशीतक (Refrigerator): प्रशीतक में ताँबे की एक कुंडली में द्रव फ्रीऑन (Liquid Freon ) भरा रहता है जो वाष्पीकरण की क्रिया के द्वारा ठंडक उतपन्न करता है।

आर्द्रता (Humidity): वायुमंडल में उपस्थित जलवाष्प (water vapour ) को आर्द्रता कहते है। वायुमंडल में प्रत्येक स्थान पर जलवाष्प की मात्रा समान नहीं होती अतः आर्द्रता का मान भी समान नहीं होता।

समुंद्री स्थानों पर वायुमंडल में जलवाष्प की मात्रा अधिक होती है अर्थात आर्द्रता का मान अधिक होता है जबकि सूखे व गर्म स्थानों पर आर्द्रता का मान अधिक होता है जबकि सूखे व गर्म स्थानों पर आर्द्रता का मान कम होता है।

सापेक्षित आर्द्रता (Relative Humidity): एक निश्चित ताप पर वायु के किसी आयतन में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा उसकी ताप पर समान आयतन की वायु को संतृत्त करने के लिए आवश्यक जलवाष्प की मात्रा के अनुपात को सापेक्षित आर्द्रता कहते है।

सापेक्षित आर्द्रता (R .H.) =

एक निश्चित ताप पर वायु के किसी आयतन में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा
 × 100
उसी ताप पर उसी आयतन की वायु को संतृत्त करने हेतु आवश्यक जलवाष्प की मात्रा 
  • सापेक्षित आर्द्रता एक तुलनात्मक भौतिक राशि है अतः इसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।
  • सापेक्षिक आद्रता को मापने के लिए हाइग्रोमीटर (Hygrometer ) नामक यंत्र का प्रयोग किया जाता है।
  • एक निश्चित ताप पर वायु जलवाष्प की एक निश्चित मात्रा को ही ग्रहण कर सकती है, यही अवस्था वायु की संतृप्त अवस्था (Saturated state) कहलाती है।

वातानुकूलन (Air conditioning): किसी स्थान की भौतिक जलवायु (ताप, आपेक्षित आर्द्रता , वायु के बहने की गति) को मानव शरीर के अनुकूल व् आरामदेह बनाना ही वातानुकूल कहलाता है।

उत्सर्जन क्षमता (Emissive Power): प्रत्येक वस्तु विकिरण ऊर्जा का उत्सर्जन करती रहती है।

  • किसी वस्तु के प्रति एकांक समय में उत्सर्जित विकिरण ऊर्जा का मान उस वस्तु की उत्सर्जन क्षमता कहलाती है।
  • चमकदार तथा पॉलिश की हुई सतह से ऊष्मा का उत्सर्जन खुरदरी सतह की अपेक्षा बहुत कम होता है यही कारण है कि थर्मस की दीवारों चमकदार पॉलिश कर दी जाती है।

अवशोषण क्षमता (Absorption Power): किसी वस्तु के प्रति एकांक पृष्ट क्षेत्रफल से प्रति एकांक समय में अवशोषित ऊर्जा की मात्रा उस वस्तु की अवशोषण क्षमता कहलाती है।

कृष्ण पिंड (Black Body): काली वस्तु ऊष्मा की अच्छी अवशोषक होती है। ऐसी काली वस्तु जो अपने पड़ने वाले संपूर्ण विकिरण को पूर्णत: अवशोषित कर लेती है कृष्णा पिण्ड कहलाती है।

सर्दियों में काले व गहरे रंग के कपड़े पहनने से अधिक ऊष्मा का अवशोषण होता है, जिससे ये वस्त्र अधिक गर्म प्रतीत होते है जबकि सफ़ेद व हल्के रंग के वस्त्र ऊष्मा के बुरे अवशोषण होते है जिससे गर्मियों में हल्के रंग के वस्त्र अधिक शीतलता प्रदान करते है।

किरचौफ़ का नियम (Kirchhoff 's  Law): इस नियम के अनुसार अच्छे अवशोषक ही अच्छे उत्सर्जन होते है। "Good absorbers are good emitters"

यदि अंधेरे में एक काली तथा एक सफ़ेद रंग की वस्तुओं को समान ताप पर गर्म करके रख दिया जाए तो किरचौफ़ के नियम के अनुसार, अच्छा अवशोषण ही अच्छे उत्सर्जन का कार्य करेगा अर्थात अंधेरे में काली वस्तु ही अधिक चमकेगी।

स्टीफन का नियम (Stephen 's Law): हम जानते है कि प्रत्येक वस्तु से विकिरण ऊर्जा उत्सर्जन होती रहती है स्टीफन के नियम के अनुसार- "किसी वस्तु के एकांक क्षेत्रफल से उत्सर्जित विकिरण ऊर्जा की दर (Σ) उस वस्तु के परमताप (T) के चतुर्थ घात के समानुपाती होती है।"

http://www.iasplanner.com/civilservices/images/symbol1.jpg T4

E = σ T4

यहाँ σ   एक नियतांक है जिसे "स्टीफन नियंतक " (Stephan 's Constant) कहा जाता है।

σ = 5.67 × 10-8 Js-1 m-2 k-1


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