गुप्‍त वंश की कुछ प्रमुख गुप्तकालीन साहित्यिक रचनाएँ और लेखक।

प्राचीन भारत का इतिहास: गुप्तकालीन साहित्य की कुछ प्रमुख साहित्यिक रचनाएं और लेखक।


Literary Works in Gupta Period

कला और संस्कृति यूपीएससी आईएएस परीक्षा का एक अनिवार्य हिस्सा है। यूपीएससी की कला और संस्कृति पाठ्यक्रम में विभिन्न आर्किटेक्चर, संगीत, पेंटिंग, मूर्तिकला, साहित्य और आदि का समावेश है। यहां, इस लेख में आईएएस उम्मीदवार गुप्त अवधि के दौरान के साहित्य जान सकते हैं, जो प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा दोनों के परिप्रेक्ष्य से महत्वपूर्ण है।

गुप्त काल को सांस्कृतिक विकास में भारत के स्वर्ण युग तथा सर्वोच्च और सबसे उत्कृष्ट समय के रूप में भी माना जाता है। गुप्ता किंग्स ने संस्कृत साहित्य को संरक्षित किया और उन्होंने उदारता से संस्कृत विद्वानों और कवियों की मदद की। अंततः संस्कृत भाषा सुसंस्कृत और शिक्षित लोगों की भाषा बन गई।

कालिदास (Kālidāsa)

ये एक शास्त्रीय संस्कृत के लेखक थे, जिन्हें बड़े पैमाने पर गुप्त काल के महान कवि और नाटककार के रूप में माना जाता था। कालिदास के छह प्रमुख कृतियां नीचे दी गयी हैं।

  • अभिज्ञानशाकुन्तलम् (Abhijnanashakuntala):  इसमें राजा दुष्यन्त तथा शकुन्तला के प्रणय, विवाह, विरह, प्रत्याख्यान तथा पुनर्मिलन की एक सुन्दर कहानी है।
  • विक्रमोर्वशी / विक्रमोर्वशीयम् (Vikramorvashi / Vikramōrvaśīyam): विक्रमोर्वशीयम् कालिदास का विख्यात नाटक। यह पांच अंकों का नाटक है। इसमें राजा पुरुरवा तथा उर्वशी का प्रेम और उनके विवाह की कथा है।
  • Mālavikāgnimitram (मालविकाग्निमित्रम्): कालिदास द्वारा रचित संस्कृत नाटक है। यह पाँच अंकों का नाटक है जिसमे मालवदेश की राजकुमारी मालविका तथा विदिशा के राजा अग्निमित्र का प्रेम और उनके विवाह का वर्णन है।
  • महाकाव्य (कविताओं) रघुवंशम् (Raghuvaṃśa / Raghuvamsha): इस महाकाव्य में उन्नीस सर्गों में रघु के कुल में उत्पन्न बीस राजाओं का इक्कीस प्रकार के छन्दों का प्रयोग करते हुए वर्णन किया गया है। इसमें दिलीप, रघु, दशरथ, राम, कुश और अतिथि का विशेष वर्णन किया गया है।
  • कुमारसंभवम् (Kumārasambhava): कुमारसंभव महाकवि कालिदास विरचित कार्तिकेय के जन्म से संबंधित महाकाव्य जिसकी गणना संस्कृत के पंच महाकाव्यों में की जाती है।
  • मेघदूतम् (Meghadūta): मेघदूतम् महाकवि कालिदास द्वारा रचित विख्यात दूतकाव्य है। इसमें एक यक्ष की कथा है जिसे कुबेर अलकापुरी से निष्कासित कर देता है।

विशाखदत्त (Vishakhadatta)

विशाखदत्त के प्रसिद्ध नाटकों में से मुद्राराक्षस (Mudrarakshasa / Mudrarakṣhasa) - मुद्राराक्षस संस्कृत का ऐतिहासिक नाटक है जिसके रचयिता विशाखदत्त हैं। इसकी रचना चौथी शताब्दी में हुई थी। इसमें चाणक्य और चन्द्रगुप्त मौर्य संबंधी ख्यात वृत्त के आधार पर चाणक्य की राजनीतिक सफलताओं का अपूर्व विश्लेषण मिलता है। इसमें नन्दवंश के नाश, चन्द्रगुप्त के राज्यारोहण, राक्षस के सक्रिय विरोध, चाणक्य की राजनीति विषयक सजगता और अन्ततः राक्षस द्वारा चन्द्रगुप्त के प्रभुत्व की स्वीकृति का उल्लेख हुआ है।

शूद्रक (Shudraka / Śūdraka)

शूद्रक नामक राजा का संस्कृत साहित्य में बहुत उल्लेख है।कुछ लोग कहते हैं, शूद्रक कोई था ही नहीं, एक कल्पित पात्र है। परन्तु पुराने समय में शूद्रक कोई राजा था इसका उल्लेख हमें स्कन्दपुराण में मिलता है।

उनके द्वारा योगदान करने वाले प्रसिद्ध तीन संस्कृत नाटक हैं:

  • मृच्छकटिका (The Little Clay Cart): मृच्छकटिकम् (अर्थात्, मिट्टी की गाड़ी) संस्कृत नाट्य साहित्य में सबसे अधिक लोकप्रिय रूपक है। इसमें 10 अंक है। इसके रचनाकार महाराज शूद्रक हैं। नाटक की पृष्टभूमि पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) है।
  • वासवदत्ता (Vinavasavadatta)
  • भाण (Bhana or bhāṇa)
  • पद्मप्रभृतका (Padmaprabhritaka)

हेरिसेना (Harisena)

हरिसेना या हिरिसना, एक चौथी शताब्दी के संस्कृत कवि, प्रशंसक और सरकारी मंत्री थे। वे गुप्त सम्राट, समुद्रगुप्त की अदालत में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे। उन्होंने समुद्र गुप्त की बहादुरी की प्रशंसा कविता लिखी, जो इलाहाबाद स्तंभ पर उत्कीर्ण है।

भास (Bhasa)

भास संस्कृत साहित्य के प्रसिद्ध नाटककार थे जिनके जीवनकाल के बारे में अधिक पता नहीं है। स्वप्नवासवदत्ता उनके द्वारा लिखित सबसे चर्चित नाटक है जिसमें एक राजा के अपने रानी के प्रति अविरहनीय प्रेम और पुनर्मिलन की कहानी है। उन्होंने 13 नाटकों को लिखा जो गुप्त युग की संस्कृति, जीवन शैली और प्रचलित मान्यताओं को अपने साथ समेटे है।

भारवि (Bharavi)

भारवि (छठी शताब्दी) संस्कृत के महान कवि हैं। वे अर्थ की गौरवता के लिये प्रसिद्ध हैं ("भारवेरर्थगौरवं")। किरातार्जुनीयम् महाकाव्य उनकी महान रचना है जिसमें इन्होंने महाभारत में वर्णित किरातवेशी शिव के साथ अर्जुन के युद्ध की लघु कथा को आधार बनाकर कवि ने राजनीति, धर्मनीति, कूटनीति, समाजनीति, युद्धनीति, जनजीवन आदि का मनोरम वर्णन किया है। इसे एक उत्कृष्ट श्रेणी की काव्यरचना माना जाता है। इनका काल छठी-सातवीं शताब्दी बताया जाता है।

भट्टी (Bhatti)

भट्टि संस्कृत के प्रसिद्द कवि थे। वे संस्कृत साहित्य के प्रमुख महाकाव्यकारों में से एक हैं जिनकी प्रसिद्द रचना रावणवधम् है जो वर्तमान में भट्टिकाव्य के नाम से अधिक जानी जाती है।

माघ (Magha)

उन्होंने शिशुपाल वध (7वीं शताब्दी) नामक केवल एक ही महाकाव्य लिखा। इस महाकाव्य में श्रीकृष्ण के द्वारा युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में चेदिनरेश शिशुपाल के वध का सांगोपांग वर्णन है। उपमा, अर्थगौरव तथा पदलालित्य - इन तीन गुणों का सुभग सह-अस्तित्व माघ के कमनीय काव्य में मिलता है, अतः "माघे सन्ति त्रयो गुणा:" उनके बारे में सुप्रसिद्ध है।

भर्तृहरि (Bhartrihari)

भर्तृहरि एक महान संस्कृत कवि थे। संस्कृत साहित्य के इतिहास में भर्तृहरि एक नीतिकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनके शतकत्रय (नीतिशतक / नीतिशतकम्, शृंगारशतक, वैराग्यशतक) की उपदेशात्मक कहानियाँ भारतीय जनमानस को विशेष रूप से प्रभावित करती हैं। प्रत्येक शतक में सौ-सौ श्लोक हैं। बाद में इन्होंने गुरु गोरखनाथ के शिष्य बनकर वैराग्य धारण कर लिया था इसलिये इनका एक लोकप्रचलित नाम बाबा भरथरी भी है।

ईश्वर कृष्ण (Ishwar Krishna)

ईश्वरकृष्ण एक प्रसिद्ध सांख्य दर्शनकार थे। इनका काल विवादग्रस्त है। डॉ॰ तकाकुसू के अनुसार उनका समय ४५० ई. के लगभग और डॉ॰ वि. स्मिथ के अनुसार २४० ई. के आसपास होना चाहिए। यह प्राय: निश्चित है कि वे बौद्ध दार्शनिक वसुबंधु के गुरु के समकालीन एवं प्रतिपक्षी थे। ईश्वरकृष्णकृत 'कारिका' सांख्य दर्शन पर उपलब्ध सर्वाधिक प्राचीन एवं लोकप्रिय ग्रंथ है।

व्यास (Vyasa)

ऋषि कृष्ण द्वेपायन वेदव्यास महाभारत ग्रंथ के रचयिता थे। वेदव्यास महाभारत के रचयिता ही नहीं, बल्कि उन घटनाओं के साक्षी भी रहे हैं, जो क्रमानुसार घटित हुई हैं। अपने आश्रम से हस्तिनापुर की समस्त गतिविधियों की सूचना उन तक तो पहुंचती थी। व्यास ने व्यासभाषा लिखी है, यह योग दर्शन पर एक प्रमुख काम था।

वात्स्यायन (Vātsyāyana / Vatsyayana)

वात्स्यायन या मल्लंग वात्स्यायन भारत के एक प्राचीन दार्शनिक थे। जिनका समय गुप्तवंश के समय (६ठी शती से ८वीं शती) माना जाता है। उन्होने कामसूत्र एवं न्यायसूत्रभाष्य की रचना की। न्याय सूत्र संयुक्त रूप से गौतम के न्याय सूत्रा पर पहली टिप्पणी के रूप में माना जाता है।


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