यूपीएससी आईएएस (मेन) हिन्दी (अनिवार्य) प्रश्न पत्र वर्ष - 2010

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यूपीएससी आईएएस (मेन) हिन्दी (अनिवार्य) प्रश्न पत्र वर्ष - २०१०

UPSC IAS (Mains) Hindi Compulsory Exam Paper - 2010


  • Time Allowed: 3 hours

  • Maximum Marks: 300

Candidates should attempt ALL questions. Answers must be written in Hindi (Devanagari Script) unless otherwise directed. In the case of Question No. 3, marks will be deducted if the precis is much longer or shorter than the prescribed length. The precis must be attempted only on the special precis sheet provided.

1. निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर लगभग 200 शब्दों में निबन्ध लिखिएः 100 अंक

(i) क्या कानून ‘मानरक्षा हत्याएँ’ रोक सकता है?
(ii) खाद्य मिलावट का खतरा।
(iii) अन्धविश्वास बनाम तर्वणपरकता।
(iv) शिक्षा और सामाजिक परिवर्तन।
(v) क्या सूचना का अधिकार अधिनियम स्वच्छ और न्यायपूर्ण प्रशासन सुनिश्चित कर सकता है?

2. निम्नलिखित गद्यांश को सावधानी से पढ़िए तथा गद्यांश के अन्त में पूछे गये प्रश्नो के स्पष्ट, सही और संक्षिप्त भाषा में उत्तर दीजिएः 60 अंक

सौर ऊर्जा, जो समूची ऊर्जा नवीकरण का हिस्सा है, पुराने ईंधनों पर हमारी निर्भरता कम करने का एकमात्रा रास्ता है। पुराने ईंधन वुछ समय के उपरान्त ज्यादा महंगे और विरल होने जा रहे हैं। सौर ऊर्जा का उपयोग हमारे पृथ्वी ग्रह के पर्यावरणीय संतुलन और जारी ‘ग्रीन हाउस’ प्रभाव को करम करने की एकमात्रा वुंजी है। सौर ऊर्जा के उपयोगी गुणों के बावजूद अभी तक न तो इसका व्यापक पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा है और न पुराने ईंधन के विकल्प के रूप में इसे स्वीकृति मिल रही है। यह इसलिए भी कि इसकी प्रौद्योगिकी अपेक्षाकृत ज्यादा महंगी है। फिर भी इसकी प्रौद्योगिकी में युतान्तकारी सुधार किए जा रहे हैं जो इसकी कीमतों में कमी ला रहे हैं, और निश्चित रूप में चाहे मन्दगति से ही सही इसे एक व्यवहार्य विकल्प बना रहे हैं। सरकार द्वारा प्रवर्त्तित जवाहर लाल नेहरु और ऊर्जा मिशन इस दिशा में एक धारणीय तथा ऊर्जा के स्वच्छ स्रोत की प्राप्ति का आदर्शवादी कदम है।

सौर ऊर्जा क्षेत्र रोजगार सृजित करने की दिशा में आशा जगाता है। यह क्षेत्र शोध और प्रौद्योगिकी नवाचार में भारी निवेश करता है तथा रोजगार की दिशा में उच्च व विशेषीकृत पद सृजित करता है।

यद्यपि विद्युत उत्पादन में भारत विश्व में छठे स्थान पर है तथापि भारत में अभी भी गहरा विद्युत संकट है। सौर ऊर्जा ही विद्युत संकट घटा सकती है। यह संपूर्ण पारिस्थितिकीय तंत्रा का गठन करेगा और ऊर्जा के उत्पादन के क्षेत्र में मांग की बढ़ोतरी करेगा। आज अत्यधिक मांग वाले और सौर पद सौर ऊर्जा यंत्रा स्थापन और अभियांत्रिकीय परिरूप विधि के क्षेत्र में है। इस उद्योग के विकास के लिए जरूरी है कि नये कौशल की वृद्धि द्वारा, उत्पादन की कीमतों में कमी कर व व्यापारान्तर कीमतों के संतुलन से कीमतों में कीम लाई जाय।

(i) हमें पुराने ईंधन पर अपनी निर्भरता कम क्यों करनी चाहिए?
(ii) सौर ऊर्जा के प्रयोग के क्या लाभ हैं?
(iii) सौर ऊर्जा का प्रयोग अभी तक लोकप्रिय क्यों नहीं बनाया गया है?
(iv) सौर ऊर्जा को सामान्य जनों की पहुँच के क्षेत्र में लाने के लिए क्या क्या किया जा रहा है?
(v) हमारे युवाओं के लिए उच्च किस्म के पद सौर ऊर्जा क्षेत्र वैसे उपलब्ध करा सकता है?
(vi) सौर ऊर्जा किस तरह कम महंगी की जा सकती है?

3. निम्नलिखित गद्यांश का संक्षेपण मूल गद्यांश की शब्द-संख्या की एक-तिहाई में प्रस्तुत करें। शीर्षक सुझाना अनिवार्य नहीं है। शब्द-सीमा के अन्तर्गत संक्षेपण न करने पर अंक काट लिए जाएँगे। संक्षेपण अलग से निर्धारित कागजों पर ही लिखें व उन्हें अच्छी तरह से उत्तर-पुस्तिका के साथ बाँध लें। 60 अंक

यदि कला को हर विशेष युग को अभिव्यक्त करना हैं तो निश्चित ही उसे बीते युगों के सीमतान्तों को तोड़ना होगा और पुरानी कल्पनाओं की सीमाओं व मानसिक ढाँचे को झटकना होगा। जीवन एक सतत प्रवाह है। उसकी गति क्रान्तियों की प्रक्रिया के दौरान त्वरित होती है जब परिवर्तन तीव्र और आमूलचूल होते हैं। ऐसे दौर में सामाजिक जरूरतें अग्रगामी सांस्कृतिक प्रवृत्तियों के लिए दबाव बनाती हैं µ एक तरह से पुरानी जड़ों को ढीला करती हुई जो पुराने प्रारूप और नये जन्मने वाले के बीच एक द्वन्द्व सृजित करती है। प्राचीन संस्कृति के समर्थक परिवर्तन से डर कर जीर तोड़ कोशिशों से यथास्थिति बनाए रखने का यत्न करते हैं, वे स्वयं को नैतिक मूल्यों और सभ्यता का संरक्षक घोषित कर डालते हैं तथा न आने वाले हर प्रवाह को टालते रहते हैं। इसे परिवर्तन के समर्थक नहीं चाहते वे पुराने मानकों और नियमों की अवज्ञा करते हें। सामाजिक परिवर्तन ही हर आकृति एक सांस्कृतिक प्रारूप की मांग करती है जो अपनी जरूरतों को स्वयं व्यक्त करती है जैसे कि पुरानी जिसे विगत युग ने रचा था, अब नई शक्ति और नई तकनीक का उपयोग नहीं कर पाती व अपनी वस्तुधारणा में नये आदर्शों में नये आदर्शों को प्रतिबिम्बित नहीं कर सकती। इस संदर्भ में पुरानी संस्कृतियों के समर्थक असांस्कृतिक और यहां तक कि बर्बरतापूर्ण तरीकों को अपनाते हैं जिनकी एक समय उन्होंने स्वयं उपेक्षा और भर्त्सना की थी। जब कोई शक्ति प्रगतिशील नहीं रह पाती वह दमनकारी बन जाती है।

नया समाज की संस्कृति और विज्ञान की हर शाखा में कलाकार को समूचे विकास के लिए अवसर प्रदान कर सकता है। आज अव्यवस्थित समाज के कारण जीवन का संश्लेषण टूट चुका है जिसमें हर शाखा की गतिविधि एक दूसरे से अलगा गई है, दार्शनिक वैज्ञानिक से अलगा गया है, कलाकार इंजीनियर से तथा एक व सब अविभक्त जीवन के महान स्पन्दमान संजाल से अलगा गये हैं जब कि हर एक संतुलन, सौन्दर्य और पूर्णता के रेखाकों को जोड़ने वाला कारक है। उदाहरण के लिए अब यांत्रिक यंत्रा भी रूढ़ गणितीय रेखांकों में विषदमय हवा और धुएं के जड़ और आवेगहीन जनक नहीं माने जाते उन्हें सामान्य रूप से नीचे की धरती और उपर के महाव्योग जैसा ही स्वीकार किया जाता है, जैसे प्राचीन पुरागाथाओं में नैपु.य और जीवन्तता के गतिमान व नायकत्वपूर्ण वृत्त स्वीकार किए जाते हैं। यंत्रा आज मनुष्य अंगों के विस्तार बन गये हें। वे बताते हैं कि मनुष्य ने निसर्ग पर अपना वर्चव्य स्थपित किया है, यह तत्वों पर उसके विजय अभियान की गाथा है। यह लड़ाई मनुष्य जितनी ही पुरानी है। यह संघर्ष परिपूर्ण सौन्दर्य, लय, संगीत और रंगों से भरा पूरा है।

अगर मनुष्य ने अपनी कमजोरी से यंत्रों को स्वयं पर प्रभुत्व की अनुमति दी है तो यह यंत्रा का दोष नहीं है जिसे मनुष्य ने स्वयं सृजा है, उसी के द्वारा बनाया गया है और नष्ट किया जाता है। परनिंदा कीयह भूख स्वयमनुष्य को भी ग्रस ले। रेडियो केवल मनुष्य के पेफड़ों का ध्वनिविस्तारक है, टेलीफोन उसके कान का। हवाई जहाज पर त्यौरी चढ़ाना और खड़खड़ाती ग्रामीण बैलगाड़ी का अनुगमन कतित्व न्याय भी नहीं है। यह केवल दकियानूसी साम्प्रदायिकता है। हाल भी एक युगान्तकारी आविष्कार जैसा कि आज ट्रैक्टर है। नये उपकरणों को गढ़ने की मनुष्य की अक्षय प्रतिभा की उपेक्षा करना सामाजिक परिवर्तनों के नियमों की उपेक्षा करता है, और कोई भी सच्चा कलाकार ऐसी उपेक्षा की सामर्थ्य नहीं जुटा सकता।’’ एक कलाकार जैविक प्रयोजन जैसा उत्पादन करता है’’, ऐसी मान्यता है प्रख्यात मैक्सिकोवासी कलाकार रिबेरा डियागो की कि ‘‘जैसे एक पेड़ पूल और फल पैदा करता है और बरस भर के खोये पत्रों आदि का विलाप नहीं करता जानते हुए कि नये मौसम में वह फिर पूलेगा और फल देगा।’’ कला को सिर्प क्या है को चित्रित नहीं करना है अपितु क्या होगा न कि औसत मिलावटी आकांक्षाओं को, न सिर्प हताश करने वाली पराजयों को बल्कि रूपान्तरित करने वाली संभावनाओं को अभिव्यक्त करना है।

4. निम्नलिखित अंग्रेजी गद्यांश का हिन्दी में अनुवाद कीजिएः

The world does not need extraordinary talented people. It does not need highly skilled people either. It has plenty of super-intelligent people. We need ordinary people with extra ordinary motivation. M.K. Gandhi was an ordinary man with amazing motivation to establish truth and justice. The Wright brothers were ordinary people with a dream of flying.

You can also achieve exceptional results if you are inspired with a higher ideal. Replacing 'inspiration' with 'information' has led to knowledge being viewed as drudgery rather than as pleasure. Education has degenerated to data being transmitted from teacher to the taught without igniting the minds of the young with a higher purpose.

How many of us wake up inspired, looking forward to a day of service? Who among us finds exhilaration in contribution to society? Life changes magically from boredom to excitement when you are inspired to serve. You redefine norms and achieve the impossible, paving the way to outstanding success. You find happiness at work, not in escaping from it. Most importantly, you evolve spiritually and attain Godhood.

Inspiration gives ordinary people the courage and hope to make life better for themselves and for the posterity. Find inspiration and life will transform into an exciting adventure of self-discovery.

5. निम्नलिखित हिन्दी गद्यांश का अंग्रेजी में अनुवाद कीजिएः 20 अंक

आज विज्ञान के सामाजिक दायित्वों के बारे में बोलते हुए मैं उन चीजों के बारे में भी बोलूश्गा जो युवा लोगों के लिए अपेक्षाकृत आसान है किन्तु बढ़ी उम्र के लोगों को समझने में कठिन। यह इसलिए कि युवा लोग एक गुण से सम्पन्न हैं जो सामान्यरूप में वुछ बरसों बाद शिथिल पड़ जाता है। वह है कल्पनाशील का गुण। कल्पनाशीलता ऐसा गुण है जो विज्ञान का अपरिहार्य अंग है और नैसर्गिक रूप से युवाओं को प्रदत्त है। दुःखद बात यही है कि बढ़ती उम्र के साथ यह गुण सूख जाता है। फिर भी यह गुण है जिसकी आज के हमारे संसार को प्रचुर मात्रा में जरूरत है।

पिछली तीन सदियों से विज्ञान की खोजों ने समाज पर अपना प्रभाव छोड़ा है, परन्तु सामान्य रूप से लोगों ने यह नहीं समझाा कि हमारे विश्व को उसने वैसे प्रभावित किया, उन्होंने इसकी परवाह भी नहीं की। न्यूटन के समय से मनुष्य को बोध हुआ कि प्रौद्योगिकी से जो कि विज्ञान की खोजों पर आधारित है प्रचुर आराम और लाभ लिए जा सकते हैं। तब लोगों ने जानना आरम्भ किया कि विज्ञान के संसर्ग से बनी औषधियों से लंबा जीवन जिया जा सकता है। लियोनार्दो द विंशी के समय से लोगों ने सरहाना की कि विज्ञान वृद्धों में विजय पाने का भौतिक सहयोगी बन सकता है। जैसे-जैसे बरस बीते एक प्रौद्योगिक भौतिकवाद विकसित हुआ, नये प्रौद्योगिक ज्ञान की मांग तेज से तेजतर हुई, ज्यादा से ज्यादा लोग वैज्ञानिक और तकनीकी विशेषज्ञ बनने लगे।

6. (क) निम्नलिखित मुहावरों और लोकोक्तियों में से किन्हीं पाश्ँच का अर्थ स्पष्ट करते हुए उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिएः 20 अंक

(i) दूध धुला
(ii) आम के आम गुठलियों के दाम
(iii) गाल बजाना
(iv) सिर मुंडाते ही ओले पड़े
(v) हाथ वंगन को आरसी क्या
(vi) नाच न जाने आंगन टेढ़ा
(vii) उ$ँची दुकान फीके पकवान
(viii) दूध का दूध पानी का पानी
(ix) गरीब की जोरू सबकी भाभी

(ख) निम्नलिखित वाक्यों में से किन्हीं पाँच वाक्यों के शुद्धरूप लिखिएः 10 अंक

(i) मां ने पुत्रा को लौटने का आदेश दिया।
(ii) यह संस्कृति वीभाग का मामला है।
(iii) भारत में नैतीकता की कमी से समस्याएँ बढ़ रही हैं।
(iv) सड़क दुर्घटनाओं में बहुत लोक मरते हैं।
(v) अखबारों में सब तरह की खबरें छपता है।
(vi) घोड़े बैलों से तेज दौड़ता हैं।
(vii) सूरज पश्चिम में निकलता है और पूरब में डूबता है।
(viii) वीरता मनुष्य की गुण है।
(ix) अर्जुन आई द्रौपदी गया।
(x) झूककर प्रणाम करो।

(ग) निम्नलिखित युग्मों में से किन्हीं पाँच को वाक्यों में इस तरह प्रयुक्त कीजिए कि उनका अर्थ स्पष्ट हो जाए और उनके बीच का उत्तर भी समझ में आ जाएः 10 अंक

(i) कर्म - क्रम
(ii) शिक्षण - प्रशिक्षण
(iii) संभाग - संभार
(iv) प्रतापी - प्रलापी
(v) आराधन - आराधक
(vi) निर्गम - निगम
(vii) कोमल - कोंपल
(viii) दुर्लभ - दुर्गम
(ix) उत्कट - उद्भट
(x) संगति - विसंगति


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